3. बाह्य प्राणायाम-
कपालभाति में पेट के समस्त अवयवों पर विषेष बल पड़ता है। अतः कपालभाति के बाद उन्हें विश्राम की आवष्यकता होती है। उन अवयवों को पुनः अपने स्थान पर स्थापित करना है। यह क्रिया हम करते हैं।
कपालभाति में पेट के समस्त अवयवों पर विषेष बल पड़ता है। अतः कपालभाति के बाद उन्हें विश्राम की आवष्यकता होती है। उन अवयवों को पुनः अपने स्थान पर स्थापित करना है। यह क्रिया हम करते हैं।
विधि- सांसों को यथाषक्ति बाहर छोड़ने के पष्चात तीन बन्धों (जालंधर बंद, उड्डीयान बंद एवं मूल बंध) को लगातार सांसों को बाहर रोककर रखें। जब सांस लेने की इच्छा हो तो सभी बन्धों को छोड़तें हुए धीरे-धीरे सांस लेना शुरू करें।
समय- इस प्राणायाम को 3-4 बार करना चाहिए।
लाभ- बार-बार पेषाब आने की समस्या, प्रोस्टेट ग्लैन्ड की समस्या में लाभ होता है।
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