योग भगाए रोग। इस नारे को नागदा के योग साधक 55 वर्षीय हीरालाल प्रजापति ने सार्थक कर दिया है। उनका दावा है कि जो कोई डॉक्टर नहीं कर पाया, वह उन्होंने योग के बूते कर दिखाया है। हीरालाल के अनुसार काला मोतियाबिंद (ग्लूकोमा) ने 1998 में बांई तो 8 साल बाद 2006 में उनकी दाईं आंख की भी रोशनी छीन ली। वे पूरी तरह नेत्रहीन हो गए। देश के प्रसिद्ध नेत्र रोग विशेषज्ञों ने उनकी बीमारी अंतिम स्टेज में होना कहकर शेष जीवन अंधेरी आंखों के साथ ही गुजरना बताया, लेकिन हीरालाल आज पूरी तरह से स्वस्थ है। दोनों आंखों से स्पष्ट देख सकते हैं। इतना ही नहीं वे बढ़ई जैसा महीन काम भी बगैर चश्मे के आसानी से कर रहे हैं। नेत्र विशेषज्ञ आश्चर्यचकित हैं, लेकिन इंदौर की डॉ. दीप्ति जैन दावा करती है कि योग से कई असाध्य बीमारियों का इलाज संभव है। हीरालाल तो उनमें शामिल मात्र एक उदाहरण है।
देश के प्रसिद्ध डॉक्टर ने कर दिया इलाज से इनकार हीरालाल ने बताया 1998 में एक आंख से दिखाई देना बंद हो गया था। उज्जैन के नेत्र रोग विशेषज्ञ डॉ. भरत जैन के सुझाव पर देश के प्रसिद्ध नेत्र चिकित्सक डॉ. पी.एन. नागपाल के पास अहमदाबाद पहुंचकर परीक्षण कराया। जांच के बाद डॉ. नागपाल ने कुछ दिन उनका उपचार किया, लेकिन बाद में स्पष्ट कर दिया कि उनकी आंख की रोशनी लौटना संभव नहीं है। इस दौरान उनके साथ शहर के हार्डवेयर व्यवसायी जेठाभाई भी थे। डॉक्टर के जवाब से वे भी मायूस हो गए। इसके बाद 2006 में उनकी दूसरी आंख की रोशनी भी चली गई। कई तरह की जांचें कराईं। इंदौर के नेत्ररोग विशेषज्ञ को भी दिखाया। उन्होंने भी कुछ दिन इलाज के बाद आंखें कभी ठीक न होने की बात कहकर इलाज से इनकार कर दिया। अंधत्व को नियति मानकर उन्होंने भी हार मान ली थी, लेकिन इसी बीच बड़े भाई नंदकिशोर ने योग से रोग दूर होने का दावा किया। दावे को परखने के लिए हीरालाल इंदौर के जानकी नगर, नवलखा बस स्टैंड स्थित पतंजलि योग पीठ केंद्र पर पहुंच गए। यहां डॉ. दीप्ति जैन ने हीरालाल का नि:शुल्क परीक्षण कर उन्हें आवश्यक आयुर्वेदिक दवाइयों के साथ 35 मिनट तक प्राणायाम के भस्त्रिका, कपालभाति व अनुलोम-विलोम करने का परामर्श दिया। दवाइयों के नियमित सेवन के साथ हीरालाल ने 35 के बजाए प्रतिदिन 3 से 4 घंटे तक प्राणायाम करना जारी रखा। परिणाम उन्हें मात्र 4 माह में दोनों आंखों की रोशनी लौटने के रूप में मिला। ( चित्र में बगैर चश्मे के ही आसानी से बढ़ई का कार्य करते हीरालाल।)
काला मोतियाबिंद से आंखों को पहुंचे नुकसान की भरपाई संभव नहीं है। क्योंकि इसका ऑप्टिक नर्व पर स्थायी असर होता है, लेकिन यदि सही समय पर इलाज मिले तो ऑप्टिक नर्व को होने वाले नुकसान को कम किया जा सकता है। 40 की उम्र पार चुके लोगों के लिए यह काफी खतरनाक होता है। प्राणायाम से इसके ठीक होने का उदाहरण हमें आप ही बता रहे हैं। ऐसा हुआ है तो निश्चित ही शोध का विषय है। डॉ. परवेज मंसूरी, नेत्र विशेषज्ञ, गोमा बाई नेत्रालय, नीमच
प्राणायाम से विभिन्न रोगों का इलाज संभव है। आपने स्वयं 8 साल के भीतर हीरालाल को दोनों आंखों की रोशनी खोते देखा है, लेकिन बाद में उनकी आंखें ठीक भी हुई है। यह सब योग का कमाल है। जरूरत बस धैर्य की है। हमने योग के सहारे ही कई असाध्य बीमारियों को ठीक किया है। इसके कई उदाहरण है। सच्चाई परखना है तो मेरे मोबाइल नं. 98260-43458 पर कॉल कर सकते हैं। डॉ. दीप्ति जैन, इंदौर
मैं स्वयं हीरालाल को व्यक्तिगत तौर पर जानता हूं। दोनों आंखों की रोशनी खोने के बाद उन्होंने घंटों प्राणायाम कर जीवन में छाए अंधेरे को दूर किया है। मेरे पास भी ऐसे कई मामले आए, जिनमें मरीज का इलाज आधुनिक चिकित्सा विज्ञान नहीं कर पाया, लेकिन योग ने उनके शारीरिक कष्ट दूर कर दिए हैं। डॉ. भेरूलाल पांचाल, योग प्रशिक्षक, नागदा
क्या है ग्लूकोमा आंखों में एक्वेस ट्यूमर नाम का एक तरल पदार्थ होता है, जो लगातार बनता और बहता रहता है। इसका काम आंखों को सही आकार देने के साथ-साथ उनका पोषण करना होता है। इस तरल पदार्थ को लैंस के चारों ओर स्थित सीलियरी टिश्यू लगातार बनाते रहते हैं। यह तरल पदार्थ पुतलियों से होता हुआ आंखों के भीतरी हिस्से में जाता है। स्वस्थ आंखों के लिए जरूरी होता है कि यह तरह पदार्थ लगातार बनता और बहता रहे। इसके बनने और बहने के संतुलन को इंट्रोक्युलर प्रेशर कहते हैं। यदि यह नहीं बनता या बहता तो ग्लूकोमा कहलाता है।
Source http://www.bhaskar.com/news/MP-UJJ-MAT-latest-ujjain-news-055537-2505033-NOR.html?seq=1
देश के प्रसिद्ध डॉक्टर ने कर दिया इलाज से इनकार हीरालाल ने बताया 1998 में एक आंख से दिखाई देना बंद हो गया था। उज्जैन के नेत्र रोग विशेषज्ञ डॉ. भरत जैन के सुझाव पर देश के प्रसिद्ध नेत्र चिकित्सक डॉ. पी.एन. नागपाल के पास अहमदाबाद पहुंचकर परीक्षण कराया। जांच के बाद डॉ. नागपाल ने कुछ दिन उनका उपचार किया, लेकिन बाद में स्पष्ट कर दिया कि उनकी आंख की रोशनी लौटना संभव नहीं है। इस दौरान उनके साथ शहर के हार्डवेयर व्यवसायी जेठाभाई भी थे। डॉक्टर के जवाब से वे भी मायूस हो गए। इसके बाद 2006 में उनकी दूसरी आंख की रोशनी भी चली गई। कई तरह की जांचें कराईं। इंदौर के नेत्ररोग विशेषज्ञ को भी दिखाया। उन्होंने भी कुछ दिन इलाज के बाद आंखें कभी ठीक न होने की बात कहकर इलाज से इनकार कर दिया। अंधत्व को नियति मानकर उन्होंने भी हार मान ली थी, लेकिन इसी बीच बड़े भाई नंदकिशोर ने योग से रोग दूर होने का दावा किया। दावे को परखने के लिए हीरालाल इंदौर के जानकी नगर, नवलखा बस स्टैंड स्थित पतंजलि योग पीठ केंद्र पर पहुंच गए। यहां डॉ. दीप्ति जैन ने हीरालाल का नि:शुल्क परीक्षण कर उन्हें आवश्यक आयुर्वेदिक दवाइयों के साथ 35 मिनट तक प्राणायाम के भस्त्रिका, कपालभाति व अनुलोम-विलोम करने का परामर्श दिया। दवाइयों के नियमित सेवन के साथ हीरालाल ने 35 के बजाए प्रतिदिन 3 से 4 घंटे तक प्राणायाम करना जारी रखा। परिणाम उन्हें मात्र 4 माह में दोनों आंखों की रोशनी लौटने के रूप में मिला। ( चित्र में बगैर चश्मे के ही आसानी से बढ़ई का कार्य करते हीरालाल।)
काला मोतियाबिंद से आंखों को पहुंचे नुकसान की भरपाई संभव नहीं है। क्योंकि इसका ऑप्टिक नर्व पर स्थायी असर होता है, लेकिन यदि सही समय पर इलाज मिले तो ऑप्टिक नर्व को होने वाले नुकसान को कम किया जा सकता है। 40 की उम्र पार चुके लोगों के लिए यह काफी खतरनाक होता है। प्राणायाम से इसके ठीक होने का उदाहरण हमें आप ही बता रहे हैं। ऐसा हुआ है तो निश्चित ही शोध का विषय है। डॉ. परवेज मंसूरी, नेत्र विशेषज्ञ, गोमा बाई नेत्रालय, नीमच
प्राणायाम से विभिन्न रोगों का इलाज संभव है। आपने स्वयं 8 साल के भीतर हीरालाल को दोनों आंखों की रोशनी खोते देखा है, लेकिन बाद में उनकी आंखें ठीक भी हुई है। यह सब योग का कमाल है। जरूरत बस धैर्य की है। हमने योग के सहारे ही कई असाध्य बीमारियों को ठीक किया है। इसके कई उदाहरण है। सच्चाई परखना है तो मेरे मोबाइल नं. 98260-43458 पर कॉल कर सकते हैं। डॉ. दीप्ति जैन, इंदौर
मैं स्वयं हीरालाल को व्यक्तिगत तौर पर जानता हूं। दोनों आंखों की रोशनी खोने के बाद उन्होंने घंटों प्राणायाम कर जीवन में छाए अंधेरे को दूर किया है। मेरे पास भी ऐसे कई मामले आए, जिनमें मरीज का इलाज आधुनिक चिकित्सा विज्ञान नहीं कर पाया, लेकिन योग ने उनके शारीरिक कष्ट दूर कर दिए हैं। डॉ. भेरूलाल पांचाल, योग प्रशिक्षक, नागदा
क्या है ग्लूकोमा आंखों में एक्वेस ट्यूमर नाम का एक तरल पदार्थ होता है, जो लगातार बनता और बहता रहता है। इसका काम आंखों को सही आकार देने के साथ-साथ उनका पोषण करना होता है। इस तरल पदार्थ को लैंस के चारों ओर स्थित सीलियरी टिश्यू लगातार बनाते रहते हैं। यह तरल पदार्थ पुतलियों से होता हुआ आंखों के भीतरी हिस्से में जाता है। स्वस्थ आंखों के लिए जरूरी होता है कि यह तरह पदार्थ लगातार बनता और बहता रहे। इसके बनने और बहने के संतुलन को इंट्रोक्युलर प्रेशर कहते हैं। यदि यह नहीं बनता या बहता तो ग्लूकोमा कहलाता है।
Source http://www.bhaskar.com/news/MP-UJJ-MAT-latest-ujjain-news-055537-2505033-NOR.html?seq=1
Sir hume bhi AK aankh se bilkul dikhna band ho gya
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