इक्कीस जून 2015 को विश्व योग दिवस मनाकर सामूहिक रूप से योगासन और सूर्यनमस्कार करने पर जोर दिया गया। योग का यह भी एक अंग है, लेकिन वह सिर्फ शुरुआत है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अपने भाषण में इसका उल्लेख किया था। संगीत के कार्यक्रम की शुरुआत में सारे वाद्यों को सुर में लाया जाता है। इससे कई लोग ऊब जाते हैं, लेकिन इसके बिना कार्यक्रम असली रंग में नहीं आ पाता। योगासन भी वाद्यों को सुर में लाने जैसा है। असली योग तो उसके बाद ही शुरू होता है। योगशास्त्र वास्तव में भारतीय मनोविज्ञानशास्त्र है और यह पश्चिमी मनोविज्ञान से बहुत आगे है। सिर्फ अध्यात्म ही नहीं व्यावहारिक जीवन में भी शानदार सफलता हासिल करने के लिए यह उपयोगी है। हाल के कुछ प्रयोगों में यह तथ्य रेखांकित हुआ है।
राजेश स्कूल में बहुत बुद्धिमान छात्र के रूप में प्रसिद्ध था। उसका लक्ष्य आईआईटी में प्रवेश पाना था। जैसे-जैसे परीक्षा पास आती गई, उसके मन पर दबाव बढ़ता गया। भविष्य अज्ञात होता है। इस अनिश्चितता के कारण डर पैदा होना स्वाभाविक है और यह यदि मन पर हावी हो जाए तो ऐसा लगने लगता है कि सफलता मिलना नामुमकिन है। यदि इस नकारात्मकता ने मन में जड़ जमा ली तो कामयाबी चकमा देती रहती है और योग्यता होने के बाद भी कई लोग नाकामयाब हो जाते हैं। राजेश जब मेरे पास आया तो उसकी हालत बहुत खराब दिखाई दे रही थी। चिंता के कारण वह भीतर से खोखला हो गया था। परीक्षा में मुश्किल से एक माह बचा था। सच तो यह था कि उसकी पढ़ाई पूरी हो गई थी और सिर्फ एक बार सरसरी तौर पर दोहराना भर था। मैंने उसे योगासन और प्राणायम करने को कहा। जो अपने को आता है, उसी की परीक्षा देनी है, इस अहसास को मैंने आत्म संवाद के द्वारा उसे अपने मन में बिठाने को कहा। उसकी दशा में सुधार के साथ आत्मविश्वास बढ़ने लगा। उसने वह परीक्षा इतने ज्यादा अंकों से पास की कि यह तय करना अब उसके हाथ में था कि उसे किस कॉलेज में प्रवेश लेना है।
आपका मन प्राय: वर्तमान छोड़कर भूतकाल या भविष्य में जाता है और किसी दूसरे स्थान के बारे में सोचकर उस पर केंद्रित होने लगता है। विजुअलाइजेश की प्रक्रिया यही है। आदत से मजबूर होकर जब हम भूतकाल में जाकर नाकामियों को दोहराते हैं। तब भविष्य के बारे सोचने पर यही लगता है कि हम वहीं गलतियां दोहराएंगे और नाकामी हाथ लगेगी। चूंकि सारे विचार मन में दृश्यों के रूप में ही आते हैं, हमारी प्रतिक्रिया भी नकारात्मक होने लगती है। यही वजह है कि अपनी विचार प्रक्रिया पर काबू पाना हमारे लिए बहुत जरूरी है। यदि आप भूतकाल की गलतियों पर ध्यान केंद्रित रखेंगे तो ये गलतियां अापके सिस्टम में चली आएंगी। इसीलिए आपको पिछले 24 घंटे में या एक हफ्ते में हुई अच्छी घटनाओं को विज़ुअलाइज करने की आदत डाल लेनी चाहिए। फिर जो भी सर्वश्रेष्ठ होगा, वह आपके सिस्टम में आ जाएगा और विपरीत परिस्थितियों से निपटने की आपकी क्षमता और साहस में बहुत सुधार हो जाएगा। इसी तरह आपको भविष्य की घटनाएं भी विज़ुअलाइज करनी चाहिए और उन परिस्थितियों में अपनी सफलता को देखना चाहिए। इसके आपके आत्मविश्वास के साथ प्रदर्शन भी सुधरेगा। यदि विज़ुअलाइज करने में कठिनाई हो तो भविष्य में जो आप चाहते हैं उन्होंने वर्बलाइज करें यानी मन ही मन शब्दों में दोहराएं। इसका अर्थ अपने आप विज़ुअलाइज होगा और आपको वही परिणाम प्राप्त होंगे। राजेश ने यही करके सफलता पाई थी।
हितेंद्र और महेंद्र महाजन डॉक्टर हैं, लेकिन उन्हें साइकिलिंग का शौक है। उन्होंने दुनिया की सबसे कठिन स्पर्द्धा मानी जाने वाली ‘रेस अक्रास अमेरिका’ में भाग लेने की ठानी (डॉ. हितेंद्र महाजन ने रेस में जाने से पहले हमारे सोमवार के अंक के लिए लेख लिखा था)। क्वालिफाइंग राउंड पूरा करने के बाद उन्हें अहसास हुआ कि उनके सामने कैसी चुनौती है। पीछे-पीछे संदेह व नकारात्मकता भी आ गई। संपूर्ण चुनौती की कल्पना करने से ऐसा हुआ। वास्तव में उन्हें एक ही दिन की और उसमें भी एक सत्र में पार किए जाने वाली दूरी का विचार करना चाहिए था। फिर योगसन से मांसपेशियों का लचीलापन बढ़ाया। ध्यान व विज़ुअलाइजेशन से आत्मविश्वास हासिल किया।
जून अंत में जब यह स्पर्द्धा हुई तो मौसम बहुत खराब था। 4800 किमी की इस रेस में समुद्र तल से 10,500 फीट ऊपर शून्य डिग्री पर साइकिल चलानी पड़ूी और एरिजोना के मरुस्थल में 48 डिग्री सेल्सियस का तापमान भी सहना पड़ा। मिसीसिपी नदी में बाढ़ के कारण कई बार रास्ता बदल दिया गया। अंतिम तीन दिन तो लगातार मूसलधार बारिश में ऊंचे-ऊंचे पर्वत पार करने पड़े। कई प्रतियोगियों ने स्पर्द्धा बीच में ही छोड़ दी। इन दोनों ने दस घंटे पहले रेस पूरी तक तिरंगा फहराया। एेसे ही, शतरंज में अंकित राजपारा ऑस्ट्रिया में नौ और फ्रांस में नौ मैच खेलने यूरोप गया। स्पर्द्धा इतनी ऊंचे दर्जे की थी कि छह मैच जीतकर भी ग्रैंडमास्टर नार्म मिल सकता था, लेकिन उसने सारे 18 मैच जीतकर चकित कर दिया। कहने का आशय यह कि इन लोगों के पालकों व प्रशिक्षकों ने उनके भीतर से नकारात्मकता निकाल डालने में बहुत मदद की। भय, शोक, क्रोध, द्वेष, ईर्ष्या जैसी नकारात्मक भावनाओं को महत्व देने की आदत पड़ जाए तो एकाग्रता हासिल नहीं होती और नाकामी हाथ आती है। हालत तब और खराब हो जाती है जब आस-पास के सारे लोग ही नाकामी और गलतियों की चर्चा करके खिलाड़ी की मानसिक क्षमता ही खत्म कर देते हैं। इसमें प्रशिक्षक व पालक भी शामिल होते हैं। हमने तो अब इन्हें भी ट्रेनिंग देने की मुहिम शुरू की है।
नकारात्मक भावनाएं हावी हो जाएं तो मानसिक संतुलन खोने जैसी हालत हो जाती है, हाथ-पैर ठंडे पड़ जाते हैं। अर्जुन के साथ यही हुआ जब उसने युद्ध क्षेत्र में भीष्म व द्रोण जैसे गुरुजनों को देखा। उनसे लड़ने की कल्पना ही उसे सहन नहीं हुई और धुनष हाथ से छूट गया। गलत विचार और सिद्धांतों को मन में जगह देने के कारण उसकी यह हालत हुई, लेकिन श्रीकृष्ण ने अपने तर्कों से नकारात्मक भावना नष्ट कर दी। फिर तो अर्जुन पांडवों की जीत के शिल्पकार बना। अपनी मानसिक स्थिति के उचित अध्ययन से सकारात्मकता मन में स्थापित की तो इस ‘विषाद योग’ के बलि बनने की नौबत ही नहीं आती। निराशा पैदा भी हुई तो आत्मविश्वास जागृत कर शानदार प्रदर्शन किया जा सकता है। इसे सभी को आजमाकर देखना चाहिए।
Source: http://www.bhaskar.com/news/ABH-bhaskar-editorial-by-bhishmaraj-bam-5085511-NOR.html
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